नई पुस्तकें >> का चुप साधि रहा... का चुप साधि रहा...राजू बलिहाटी
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सेल्प-हेल्प
प्रस्तावना
जब हम रामचरित मानस की चौपाई - ‘कहहि रीछपति सुन हनुमाना। का चुप साधि रहा बलवाना।।' पढ़ते हैं, अन्दर से एक सोच उत्पन्न होती है कि हम सब भी अंतर्निहित शक्तियों को भूलकर चुपचाप शान्त बैठे हुए हैं। जैसे हनुमान जी को अपनी शक्तियों का अंदाजा नहीं था। सारे वानर जामवंत के आगे एक-एक करके आते हैं और कहते हैं कि हम जा सकते हैं पर वापस नहीं आ सकते, कोई कहता हम आधे रास्ते जा सकते हैं, इन सबसे बेखबर हनुमान जी एक खोह के पास राम-राम जप रहे होते हैं। कोई उपाय होता न देख जामवंत जी उनके पास जाते हैं और उनको पूरी कहानी सुना डालते हैं कि किस तरह ऋषियों के शाप के कारण वो अपनी शक्ति को भूल बैठे हैं। जैसे ही हनुमान जी सारी घटना सुनते हैं उनको अपनी अंतर्निहित शक्तियाँ याद आ जाती हैं और सहर्ष समुद्र पार लंका जाने के लिए तैयार हो जाते हैं।
अपने शिक्षकीय जीवन में भी मैंने कई बार देखा बहुत सारे बच्चे हार मानकर मायूस हो अपनी जिन्दगी के बहाव को रोक सा दिए या फिर उनको ये अंदाजा ही नहीं था कि वो क्या कर सकते हैं? समय-समय पर जो विचार या उपाय हमने अपने बच्चों को बताया या खुद उनको अपने जीवन में उतारा उन्हीं सबका संकलन है यह पुस्तक ‘का चुप साधि रहा..... ’।
आज इस भागमभाग की जिन्दगी में सबसे जरूरी है कि हम अपनी आने वाली पीढ़ी को उनकी क्षमताओं के बारे में हमेशा सतर्क करते रहे। इसलिए भी मैंने इस पुस्तक को सबके सामने लाने का प्रयास किया है। आज इस प्रतियोगी युग में बहुत जरूरी है कि हर युवा सफलता-असफलता से परे एक जीवंत जीवन जीने की कोशिश करे। किसी भी क्षेत्र में हमें अपने ऊपर विश्वास रखते हुए कठिन से कठिन परिश्रम करना चाहिए। ये इसलिए भी जरूरी है कि जब हम पीछे मुड़कर देखें तो यह मन में मसोस न आए कि काश थोड़ा और मेहनत किए होते तो शायद ऐसा होता। सही दिशा में किया गया प्रयास कभी भी बेकार नहीं जाता। हमने एक कोशिश की है कि जो युवा अपने भविष्य के बारे में संजीदा है, इन उपायों को अपना सकते हैं। हम यह कभी दावा नहीं करते की हमारी पुस्तक रातों-रात आपको सफलता दिलाएगी पर इतना जरूर है कि इस पुस्तक में दिए गये उपायों को अपनाने से आप आसानी से अपने लक्ष्य को पा सकते हैं। व्यक्तित्व विकास पर आपके हाथ में या बाजार में बहुत सारी पुस्तकें मिलेगी हम उन से कुछ अलग आपको बताएँगे, ऐसा कुछ नहीं पर उन सब को सहज रूप में आपके सामने रखने का एक प्रयास है।
आपके मन में जब भी निराशा आए एक बार हमारी पुस्तक पर नजर दौड़ाएँ जरूर आपको मदद मिलेगी। एक चीज और किताब खरीद कर रखने से कोई फायदा नहीं होता उसको पढ़ना चाहिए आज के युग में पुस्तकें लोग कम ही पढ़ रहे। इसलिए हमने अपनी पुस्तक की इलेक्ट्रानिक प्रति (ईबुक) भी आप सबके लिए उपलब्ध कराई है जिसे आप कभी भी कहीं भी पढ़ सकते हैं।
अन्त में हम अपनी पत्नी सोनाली व अपने बच्चों अभिलाषा व आशुतोष के त्याग व समर्थन जिसके बिना यह लेखकीय यात्रा अधूरी ही रहती। हर कदम में इनका सुझाव व समर्थन मिलता रहा है। लेखन कार्य एक एकाकीपन का कार्य है और इसमें कई बार सबसे ज्यादा कष्ट इन्हीं लोगों को हुआ है। इनको हमारे साथ की कमी खटकती रहती हैं। जब विद्यालय में सबके माता-पिता जाते हैं उस समय कई बार ये अपने माता जी के साथ जाते हैं, जिनका इन्हें कष्ट होता है। आप सब के सहयोग से ही हमारी पुस्तकें सम्भव हो पाती हैं, हम उम्मीद करते हैं कि आगे भी ये यात्रा जारी रहेगी।
आप सब के सहयोग व सुझाव के इन्तजार में...
आपका
राजू बलिहाटी
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